1200 किलोमीटर साइकिल चला, बेटी पिता को ले आयी घर
( After 1200 km cycling, the girl with her father reaches to her home )
"कौन कहता है सिर्फ बेटे ही घर का चिराग़ हैं;बेटियाँ भी घरों को रोशन करती हैं"
लॉकडाउन में एक तरफ 130 करोड़ की जनसंख्या वाला देश घरों में बंद है, वहीं दूसरी ओर एक गरीब मजदूर की बेटी ने ऐसा कार्य कर दिया है की, यदि उसे कलयुग में श्रवण कुमार के नारी अवतार की संज्ञा दें तो ग़लत नहीं होगा!
13 साल की ज्योति अपने बीमार पिता को गुरूग्राम से दरभंगा तक साइकिल पर बिठाकर ले आई।
पापा में थी हिचक, बेटी के हौसले ने पूरी कर दी यात्रा "खाने पीने को कोई पैसा नहीं रह गया था. रूम मालिक भी तीन बार बाहर निकालने की धमकी दे चुका था. वहां (गुरूग्राम) मरने से अच्छा था कि हम रास्ते में मरें. "13 साल की ज्योति ने रोते हुए फ़ोन पर बताया!
ज्योति अपने पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बैठाकर गुरूग्राम से दरभंगा के सिंहवाड़ा स्थित अपने गांव सिरहुल्ली ले आई है! ये 1200 किलोमीटर का सफ़र इस दुबली पतली सी बच्ची के हौसलों के चलते ही संभव हुआ!
आज ज्योति के इस कारनामे पर भले ही पूरे देश को गर्व है परंतु यहां हमे य़ह भी सोचने की आवश्यकता है कि मात्र 13 साल की उम्र में उसे इतना बड़ा फैसला लेने पर क्यूँ मजबूर होना पड़ा? ज्योति द्वारा उस रूम मालिक का व्यहवार जानकर तो मन में यही प्रश्न उठता है कि क्या हमारे समाज में थोड़ी भी करुणा नहीं बची?
लेखक ~ शुभम सिंह
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