चीन के साए में भारत से मित्रता खोने को मजबूर नेपाल -
( Nepal forced to lose friendship with India under the shadow of China )
अब तक सर्व विदित रहा है कि नेपाल से न केवल हमारे राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक
और पौराणिक सम्बन्ध रामायण काल से ही रहे हैं। वो नेपाल जो माता सीता की
जन्मस्थली रहा है, वो नेपाल जहां भगवान
बुद्ध ने उपदेश दिया, वो नेपाल जहां आज भी हर
वर्ष लाखों भारतीय भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन हेतु जाते है, वो नेपाल जो धर्म और आचार की दृष्टि से भारत के सबसे करीब
है, वो नेपाल जिसका भारत सदैव एक मित्र राष्ट्र की भांति आर्थिक,
सामाजिक और सामरिक रूप से संरक्षण और संवर्धन
करता आया है। मगर इन दिनों नेपाल ने अपनी कैबिनेट की मंजूरी से विवादास्पद नक्शा
जारी किया है जिसमें भारतीय क्षेत्रों जैसे लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को अपना बताया है। अब सवाल यह है कि
क्या ये सिर्फ एक संयोग मात्र है कि इन तीनों क्षेत्रों कि सीमा चीन से लगती है? 1970 के दशक के बाद अब जब
पूरा विश्व कोरोना से जूझ रहा है तब इस मुद्दे को उठवाकर नेपाल की पीठ से भारत पर
गोली दागना चाहता है जो कि इस समय कोरोनावायरसस के कारण सभी राष्ट्रों से उसके
कथित रूप से शीत युद्ध छिड़ जाने के बाद स्वाभाविक भी है ।
नेपाल शायद भूल गया है कि उसे 80% वस्तुओं की आपूर्ति भारतीय मार्गों से की जाती
है, हजारों नेपाली लोग भारत
में रोज़गार पाते हैं और उन्हें सरकारी नौकरी करने की भी छूट है। जब नेपाल में
भूकंप के कारण जनजीवन अस्त व्यस्त था तब भारत सहायता में अग्रणी था। परंतु विडंबना इस बात की है कि नेपाल चीन क साए
में आकर मित्रता छोड़ने को मजबूर सा दिखाई देता है हालांकि भारत का रवैया सदैव
शांतिपूर्ण रहा है और हर संभव परिस्थितियों तक रहेगा। भारत नेपाल के लिए उसकी
जीवनरक्षक संजीवनी के समान है जो चीन की नज़रों में अखर रहा है। चीन इन दोनों
देशों की मित्रता में कड़वाहट लाना चाहता है। इससे उसके दो उद्देश्य पूरे होंगे
पहला ये कि वैश्विक समुदाय की चीन से नजर हटेगी जो कि कोरोनावायरस के आगमन के बाद
से उसपर टिकी हुई है और दूसरा य कि डोकलाम और पी.ओ.के. की ही भांति नेपाल से उसके
सामरिक और आर्थिक हित सिद्ध होंगे। नेपाल पाकिस्तान की ही भांति चीन के कचड़े को
बेचने का अड्डा और अप्रत्यक्ष उपनिवेश बन कर रह जाएगा। जिसमें नेपाल का कहीं भी
हित नजर नहीं आता है।
इस संदर्भ में पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी की एक बात याद आती
है-
“हम मित्र बदल सकते हैं पड़ोसी नहीं यदि नेपाल वैश्विक सियासी परिस्थितियों के कारण भारत से अलग राय रखता है तो उसे हम अपना दुश्मन नहीं मान सकते वहां की सरकार को चाहिए कि वह भारतीय राजदूत के साथ बात चीत करके समस्या का हल निकाले।"
परंतु बिना बात किए अपनी कैबिनेट में नक्शा लाने के पीछे साफ साफ चीन के बहकावे की झलक दिखती है।
खैर आशा है जल्द ही नेपाल को अपने हित और भारत की मैत्री की समझ आएगी।
लेखक- प्रफुल्ल भट्ट ।
Very informative article🇮🇳🌺
ReplyDeleteI agree with you bro
ReplyDeleteSuperb article
Wow! Nice article bhai
ReplyDeleteKeep it up
Agree with u
Dwand kha tak pala jaye
ReplyDeleteYuddha kaha tak tala jaye
Ru bhi hai Rana ka vanshaj
Fek Jha tak Bhala jaye
Aur dono taraf likha ho Bharat
Sikka Wahi uchhala jaye 🙏
harsh reality of today
ReplyDeletevery true and relevent article
ReplyDeleteits a very important article we should think about it..
ReplyDeleteWe should think about this topic
ReplyDeleteGood article!
ReplyDeleteWe should tell the peoples about it
ReplyDeleteGreat article bro....we have to tell the peoples
ReplyDeleteperfect article.
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